Saturday 9 April 2016

लगाने अबीर के बहाने 

special creation on the occasion of Holi...
Spread colors of love..


लगाने अबीर के बहाने गालों को उनके छू लिया,
बरसों पुराना ये ख़्वाब मुकम्मल हो गया ।

उन्हें लगा नशा ये होली का है
और हमें नशा किसी और का हो गया ।।


थमी रही बेईमान उंगलिया वहाँ,
जैसे वक़्त थम गया हो ।
लाख कोशिशें फिर भी ना हटे,
मानो अबीर जम गया हो ।।


रफ़्तार पकड़ी धड़कन ने,
साँसों का भी हाल वही था ।
बयाँ क्या करूँ दास्ताँ अपनी?
उनका भी हाल वही था ।।


दिखाने लगा औकाद अबीर अब अपनी,
कमबख़्त फिसलन भरा था । 
जुदा हुई हथेली गाल से,
पर मन अभी नहीं भरा था ।।


एहसास छूअन का अभी भी था,
होठों पर लब्ज़ ठहर गए ।
हमें नशा परवान हुआ,
थोड़े वो भी सिहर गए ।।


इस क़द्र छाई खुमारी नशे की ,
जरूरत नहीं भंग की
उतारो नहीं उतरे ऐसी है फितरत 
इश्क के रंग की


लगाने अबीर के बहाने गालों को उनके छू लिया, 
बरसों पुराना ये ख़्वाब मुकम्मल हो गया ।
उन्हें लगा नशा ये होली का है 
और हमें नशा किसी और का हो गया । ।
D.Umesh